उनींदी पलकों को
कोई चूम के गया
धीमे से दे करके आवाज
जगा गया मुझको
आज फिर…
चाय की प्याली मेरी
कब खाली हुई
कुछ पता न चला
ऐसे कोई मन पर छाया रहा
आज फिर……
दिन भर रहा मुझे
इंतजार उसका
न आया न बुलाया ही
जानती थी ये बात
शिद्दत से रही देखती राह मगर
आज फिर……
सांझ फिर आज
गजब सज धज के उतरी
हर तरफ छाई रही
कयामत सी आभा
दीवाना दिल रहा धडकता बेताबी से
आज फिर…
हवा जब जब आई
मचला मन मेरा
किसी की आहटें भी
हर घडी दीं सुनाई
मेरी बिखरी हुई लट को कोई
संवार के गया
आज फिर………!
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