Monday 20 February 2012

आज फिर


उनींदी पलकों को
कोई चूम के गया
धीमे से दे करके आवाज
जगा गया मुझको
आज फिर
        
चाय की प्याली मेरी
कब खाली हुई
कुछ पता चला
ऐसे कोई मन पर छाया रहा
आज फिर……
 
दिन भर रहा मुझे
इंतजार उसका
आया बुलाया ही
जानती थी ये बात
शिद्दत से रही देखती राह मगर
आज फिर……
    
सांझ फिर आज
गजब सज धज के उतरी
हर तरफ छाई रही
कयामत सी आभा
दीवाना दिल रहा धडकता बेताबी से
आज फिर
  
हवा जब जब आई
मचला मन मेरा
किसी की आहटें भी
हर घडी दीं सुनाई
मेरी बिखरी हुई लट को कोई
संवार के गया 
आज फिर………!

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