Monday, 20 February 2012

पास बैठो


भागते दौड़ते बीत गए
दिन रैन…
जरा सुभीते से बैठकर पढ़ने लगी
जिन्दगी की किताब
फर्र फर्र पलटते हुए पन्ने
इत्मिनान से देखने की कहां फुर्सत…
कई चेहरे कई वाकया…
कई नादानियां ,कितनी ही
फंतासियां…

कभी मुस्कुराई मन ही मन
कभी चेहरा हुआ रुआंसा
कई अजीबोगरीब हरकतों
से भी पडा वास्ता…
नटखट बचपन ने सबसे अधिक भरमाया…

जिन्दगी की तस्वीर जरा
करीब से देखा ,
तो तुम्हें पाया…
कौन हो तुम…
चटक नैन नक्श
शोखियों से लबालब
भीतर प्रवाहित अनन्त तेज
सशक्त सहारा देने को आतुर
अनुरागी सहचर भी
अनुभवी मार्गदर्शक भी
भरोसेमंद साथी…

एक ही साथ तुममें सब कुछ समाया
एक तुम्हें पाकर
मैंने सब कुछ पाया…
मन भरा-भरा सा है
ठहर गई नजर इन खूबसूरत लम्हों पर
कुछ और देखने की इच्छा नहीं अब

तुम्हें पाकर पा लिया मैंने
सब कुछ
और किसी चीज की तमन्ना नहीं
कर सकूं साज संभाल
स्नेह भरे रिश्तों की
तुम राह दिखाते जाना
चल सकूं तुम्हारे पीछे पीछे
तुम नजरों के दायरे में ही रहना
  
जिन्दगी छोटी है
छोटी ही दुनिया भी है
पर भूल भुलैया मिलेगी हर मोड पर
तुम हाथ थामे रहना

अनगिन रंगों से भरी
जिन्दगी की यह किताब
चलचित्र की तरह आती जाती
अनगिनत यादों से
भरे पन्ने
पास बैठो साथ पल दो पल
बैठी हूं सुभीते से इसे पढने

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