हर घर में रहता है
आजकल
हमारी कद काठी का आईना…
पूरी दुनिया को तो
हम निहार सकते हैं
जब चाहे ,जैसे चाहे
पर खुद को निहारना हो
तो ,
आईने की जरूरत होती है
अपना चेहरा
अपना सिंगार
अपना पहनावा
और चाल ढाल
सब कुछ देख परख सकते हैं
हम इसमें…
कभी ध्यान से देखें तो
यह अकेलेपन का
खामोश साथी ही लगेगा
कभी मन में कोई भय
समाया हो ,
तो अपना अक्श ही डरा देगा
हल्के उजाले में
हल्के अंधियारे में
धक्क से हो जाएगा कलेजा
कोई है…भ्रम हो जाएगा…
मन आत्मविश्वास से लबरेज हो अगर
तो चेहरे पर चमक दिख जाएगी
मन में कोई गुनाह सुगबुगा
रहा हो अगर…
आंख मिला नहीं पाएंगे हम
आईने से…
कई सवालात उभर आएंग़े
अपनी ही छवि की नजरों में
आर –पार दिखला देता है
आईना
हमको,हमारे भीतर चल रहे
उहापोह को
……………………
निष्प्राण समझने की भूल न करे कोई
इस आईने को
आदमकद आईने को…॥
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