Monday 20 February 2012

जरुबेरा का नन्हा फूल


मेरे बाग में खिला
जरुबेरा का एक नन्हा फूल
कितना इंतजार किया मैंने इसका
पौधा जब छोटा सा था
तभी से

हर दिन देखती
नए नए पत्ते निकलते
इसका कद धीरे धीरे बढता गया
और जब कली आई
तो मेरे भी मन की कली मुस्कुराई
हर रोज देखती जरा सा खुलते
पलकें इसकी

और जब यह खिला
अलमस्त
बहुत ही प्यारा
नन्हे से बच्चे की तरह इसकी
पतली पतली पंखुडियां खुलीं
जैसे पतली अंगुलियां निकाल रहा हो
बालक एक एक कर मुट्ठी से
बाल मुख पर वैसी ही नाजुक आभा
बहुत ही रोमांच भरा था
उसका यूं अंगडाई लेकर जागना
और आहिस्ता आहिस्ता खिलना
जैसे परिचय होता है किसी अजनबी से
रफ़्ता रफ़्ता
और जब जान पहचान हो जाती है
तब खुल जाता है मन पूरी तरह
मिल जाते हैं दिल आर-पार
वक्त का अंतराल कम नहीं कर पाता
ये जुडाव……

पूरा खिलते ही ये फूल घूम गया
सूरज की तरफ
आश्चर्य…!
किरणों की चाह लिए खिला है शायद
चुलबुल…!
पास से गुजरती हूं तो लगता है
झूम कर छूना चाह रहा हो
मन से मन का नाता तो है ही
धक्क से हो गया दिल
शरमा गई मेरी नजर
कहीं बढकर मेरी लट संवार दे…!!

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