Thursday 24 July 2014

चांदनी

चांदनी
छन छन कर रही
वो सामने जो दरख्त है
उसके पत्तों से
इंतजार में हूं
कि रूई के फाहों जैसे मेघ में
फिसलता फिसलता चांद
पत्तों की ओट से
बाहर कब आयेगा
आएगा ही
आना ही होगा
उसका रास्ता मेरी बालकनी से होकर
ही जाता है
आमने सामने आते ही
मुस्कुराती हूं मैं
और हंस देता है वह भी
दूधिया दांत बिखेरकर
नन्हें बालक सा
जिसकी मुस्कान हर लेती है
मन के सारे ताप
पल भर में ही
दिन भर की थकान
बेवजह के तनाव
सारे घुल जाते हैं
पल भर में ही
मुट्ठी भर चांदनी
छींटकर मेरे चारों ओर
चल देगा वो
मुडकर भी नहीं देखेगा
और मैं भींग कर शीतल एहसास में
हल्की हल्की होकर
जाऊंगी भीतर
पूरे इत्मिनान से
कि कल फिर आयेगा
आना ही होगा
क्योंकि रास्ता उसका
मेरी बालकनी से होकर ही जाता है……………


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