Thursday 31 July 2014

चिट्ठी

किताब के पन्नों में
सहेज कर रखी हुई
एक चिट्ठी मिली
तपाक से ढेर से लम्हे कूद पडे
आंखों के सामने
अनगिनत यादें लेकर

छुटके के जन्म दिन पर आई थी
यह चिट्ठी
छुटके का कद अब मेरे से ऊंचा है
पर इस प्यार भरी
चिट्ठी का कद तो
हिमालय से भी ऊंचा है
सागर से भी गहरा है इसमें समाया हुआ स्नेह

यह पीहर की चिट्ठी है
दो बातें दादी की तरफ से
चार अम्मा की तरफ से
कुछ हिदायतें दीदी की तो
कुछ मशविरे बाबा के भी

आंखें तब भी धुंधलाई थीं पढते हुए
आज भी मन भारी हुआ

ऐसा क्या होता है शब्दों में गुंथा
पिरोया हुआ
जो हू हू लाकर रख देता है बीते वक्त को
नजर के सामने
कितनी नरमाई होती है इनकी छुअन में
कितने असरदार होते हैं
शब्द चिट्ठियों के

शब्दों के पार भी पिरोई होती है
संवेदना और अथाह आत्मीयता
देर तक थामे बैठी रही
चिट्ठी को
कि जैसे गया हो आशीष भरा हाथ
सर पर
प्यार भरा स्पर्श गालों पर

आंसू की शक्ल में…………………

No comments:

Post a Comment