Thursday 31 July 2014

साथ तुम्हारा

तुम जब साथ होते हो
भरा भरा सा रहता है मन मेरा

निर्भय विचरती हूं हर कहीं
जानती हूं ठोकर लगी तो
संभालोगे
गिरूं भी तो उठा लोगे
या कि थाम लोगे गिरने से पहले ही

भटकने नहीं दोगे
निर्बाध बहती मेरी कल्पना को

अवरोध विहीन रखते हो तुम
मेरी राहों को

थकान मे छांव बनकर
थपथपा देते हो कंधों को

मेरे खुशनुमा पलों पर
फूल सा झरता है तुम्हारा स्नेह

कोमल फुहार सा भीना भीना लगता है
मुझको साथ तुम्हारा

बताऊं
तुमसे बिछडकर क्या गति होती है मेरी
लगता है जैसे खून जम गया हो
मेरी देह का
या कि थम ही गयी हो धडकन

जोर जोर से चक्कर काट रही हो धरती
और दायें बायें झूल रहा हो
आसमान झूले की तरह

सब कुछ उलट पुलट
जाने किस आकर्षण से

बांधे रहता है मुझको साथ तुम्हारा……

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