Thursday 24 July 2014

तभी तो

पता है कि अभी
किसी को आना नहीं है
फिर भी दौड दौड कर
बालकनी से झांक रही हूं
थोडी थोडी देर में दरवाजा खोल कर
बाहर निहार रही हूं
रह रह कर डोर बेल की आवाज भी
आ रही कानों में
ये क्या हो गया मुझे
अब कोई सरप्राईज का जमाना तो रहा नहीं
न ही चिटठी पत्री वाले दिन ही हैं
कि आगमान का संदेश बाद में पहुंचे
पहले आना वाला ही आ जाए
अभी तो आने का प्रोग्राम
बन रहा हो तभी खबर आ जाती है
फिर टिकट मिली या नहीं
मिली तो कनफर्म है या नहीं
ट्रेन खुली या नहीं
पल पल का समाचार
मिल जाता है
अचानक मिलने वाली खुशी का
जमाना लद गया……

फिर किसका आसरा देख रही आंखें
कौन है आने वाला
नहीं मालूम
सोचती हूं
हर किसी को किसी न किसी का
इंतजार तो रहता ही है
घोंसलों को भी
अपने परिन्दों का इंतजार रहता है
सुना है वह शाख भी
तब तक नहीं सोती
जब तक घोंसलों में पंछी
आ नहीं जाते
नन्हे शावकों को मां का
और तबेलों को
जानवरों का भी इंतजार रहता है
रात को चांद का
भोर को सूरज का
सागर को नदियों का
और और और
सभी को किसी न किसी का
इंतजार तो रहता ही है

सच कहूं
मुझे तो हर पल इंतजार रहता है तुम्हारा
आने का वक्त हो या कि न हो
सुनो- कभी यूं ही आ जाना
बेवक्त
बिना पूर्व सूचना के
कि इंतजार का यह एहसास
जी उठे
रोम रोम मुस्कुरा कर कहे

तभी तो…………………

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