Tuesday 22 July 2014

कोशी कहती है

फ़िर आने को है बरसात
मैं मन ही मन डरी हुई हूं
मेरी अथाह जलराशि
मेरी सन्तानों को घर से बेघर कर दे
मैं तो मां हूं
भला अहित कैसे चाहूंगी किसी का भी
मेरा भी जन्म अन्य नदियों की तरह
ही हुआ है
नन्हें से झरने के रूप में
मैं पर्वत से उतरी हूं
जलप्रपात बन निर्भीक मचलती
रास्ते के अवरोधों को आप ही ढकेलती
राह बनाती आयी हूं
मेरा तो सर्वस्व ही जीव मात्र की प्यास
बुझाने को प्रस्तुत रहता है
खेत खलिहान
पंछी पशुधन कीट पतंग़
सभी मेरी संतान हैं
मुझे थोडा सा सहारा देकर
मेरी धारा को बांट संभाल कर
इस्तेमाल करे इंसान
तो आप दुखी हो मुझे दुख दे
मैं भी तो नहीं चाहती कोई कहर ढाना
मेरे आस पास रहने वालों
मेरी यही है करबद्ध प्रार्थना
अपनी हिफ़ाजत आप कर लो

मुझे किसी भी कलंक से बचा लो……

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