Thursday 24 July 2014

रिश्ते घने मेघ-से

बीच आसमान में
जमा हैं ढेर से बादल
दसों दिशाओं से आ आ कर
नन्हें मझोले बडे रूई के फाहों जैसे
गड गड गडम …
आपस मे उलझ पुलझ रहे
जैसे बैठने बिठाने का कार्यक्रम चल रहा
मानों खाने की टेबल पर जमा हों
घर के सभी
बडे बुजुर्ग छोटे बाल गोपाल
भाई भावज बहन जमाई
पोते नवसियां
ननदें जेठानियां
बर्तनों की खन्न खन्न
हंसी मजाक का महौल
हल्का खुशनुमा वातावरण
जो कई गुना बढा देता है
खाने का स्वाद
मुंह का जायका
और अपने आप ही
बढ जाते हैं उम्र के लम्हे……

बीच बीच में
हल्की बरसात
जैसे ऊपर बदरा
फुहिया जाता है अनायास ही
भिंगो देता है कण कण को
अपनी नन्हीं कणिकाओं से
गूंजकर
हंसी की फुहारें
सराबोर कर देती हैं पूरी जमात को
नजर न लगे किसी की

ऐसे घर परिवार को……। 

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