Friday 27 April 2012

फिर क्या कहने


हर पल जीवन
राह ताकता
अपनी बांह पसारे
प्यार भरा पाथेय लिए
कोई साथ चले
फिर क्या कहने…

कुछ तलाशना
फिर पा लेना
प्राप्य हमारा जो भी है
लिए प्रकाश पुंज हाथों में
कोई साथ चले
फिर क्या कहने…
 
कोई भेद ह्र्दय की
सब परतें
है अंतर्मन में झांक रहा
बिन शब्दों बिन भाषा के
वह बांच दे मन
फिर क्या कहने…

सपनों का कारवां
संग रहे ,और
उजागर आशाएं
दिव्य लोक तक हाथ थाम
सब साथ चलें
फिर क्या कहने……!

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