Sunday 29 April 2012

ऐसा क्यों किया


भरी महफिल
मैंने अपनी नज्म सुनाई
निगाहें नीची ही रहीं
नज्म अपनी थी
अपने रगों से होकर गुजरी हुई…

अभी आधा ही
सुनाया था
तेरी पलकों ने दगा दे दिया
संभाल नहीं पाए
दो नन्ही बूंदों को भी…

बाकी की नज्म
महफिल ने खुद ब खुद
सुन समझ लिया…

आह !
ये तूने क्या किया
बरसों मैंने छुपाया
सात पर्दों में दिल के
आज चंद पलों में ही
उजागर कर दिया ?
हमराज मेरे
तुमने ऐसा क्यों किया ??

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