Monday 30 April 2012

ये तारे


उस साँझ चंचल पानी में
चांद के चेहरे की छाया
और उसकी चांदी सी झिलमिलाती
चांदनी निहारते हुए
मन खिल उठा....
दुधिया रौशनी धरती आकाश
तक पसरी हुई
मानों रुपहली चादर ओढ़कर
सारी सृष्टि ही सो रही हो....

निगाहें ऊपर उठाई तो
साफ स्वच्छ नील गगन में
एक पूरा चांद और
उसके ठीक चिबुक के पास
एक नन्हा चमकीला तारा....
मुस्कुराता हुआ...
कह नहीं सकती मुझे
क्या ज्यादा अच्छा लगा..
पूनम का वह चंद्रमा
शुभ्र नीला आसमान या
वह सुकुमार सा तारा ,
सब मोहक सब लुभावने..
                   

प्रत्येक शाम मैं रेलिंग के पास
खड़ी हो अपलक निहारती
बालकनी से आसमान का जितना
हिस्सा दिखाई देता
तारों से भरा ....
टिमटिमाते तारों से ,
कभी तो लगता सब के सब

कितने पास हैँ
बिल्कुल हाथ की पहुंच के भीतर
कभी बहुत बहुत दूर लगते...
एक अदृश्य जुड़ाव सा बन आया
हो भी क्यों न..!
क्षिति ,गगन,पवन
जल और अग्नि
इन्हीं पंचतत्वों से तो
हमारा शरीर भी बना है
संबंध तो होगा ही...
                
सूर्य ,चंद्र , ग्रह, सितारे
सबसे हमारा जन्म जन्मांतर का
नाता है...
जल पवन और अग्नि
तो हमारे शरीर का
हिस्सा ही हैं.....
कहते हैं देव दानव युद्ध में
जब समुद्र मंथन हुआ
माँ लक्ष्मी के साथ
चंद्रमा भी निकले समुद्र से
तभी से इन्हें हमने मामा
कहकर पुकारना शुरु किया
अब इसे क्या कहें.?
जमीनी इंसानों का
आसमानी फरिश्तों से
कौन सा रिश्ता है..?
    
              
इन तारों के साथ
कितनी ही कहानियाँ,
किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं
अनगिनत तारों का एक
समूह जिसे आकाश गंगा कहते हैं
कहते हैं राक्षसों के सरगना
रावण ने
आकाश मार्ग बनाना चाहा था
स्वर्ग तक पहुंचने का....
ये सप्तऋषि मंडल ,
ये ध्रुव तारा ,
नन्हा तपस्वी
माता के कहने पर
पिता की गोद तलाशता
विष्णु लोक ही जा पहुँचा..

रात के अंधेरे में
मोतियों भरी थाल
जगमग करती...
असंख्य तारे असंख्य कहानियां
भोर को दिखाई देने वाला तारा
समय का सूचक
दिशा का पता बताने वाला तारा
कौन सी पूरब दिशा है
कौन सी उत्तर...
अंधेरी राह के राही का
मार्गदर्शक.,सहारा
वो कहते हैं न...
रहबर कोई नक्षत्र हो
साथी कोई मन का
कट जाए
हँसते हँसते रस्ता जीवन का.....


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