Sunday 29 April 2012

दूर कहीं से


दूर कहीं से आवाज आई
लगा तुमने पुकारा हो
आवाज हू-ब-हू
तुम्हारी लगी…
मेरे पांव थरथराए
पर उठ न पाए
आत्मा देह से निकली
और दौड पडी…

शाम का वक्त
घर को लौटते
तुमने बायां हाथ
बगल की खाली पडी
सीट पर रखा है…
मैं देह बनी महसूस रही हूं
छुअन तुम्हारी
कसकर थाम लिया है
हाथ तुम्हारा
छूट न जाए कहीं…

तुमने कहा था
ऐसे ही करते हो सफर
परेशानी नहीं होती तुम्हें
चाहे कितनी भी भीड भरी राह हो
एक हाथ से स्टेयरिंग संभालते
एक से थाम कर हाथ मेरा
यह भी कि
ऐसे कट जाता है सफर आसानी से…॥

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