Sunday 29 April 2012

बहुत पुरानी बात है



रूई के नन्हे नन्हे फ़ाहों जैसे
थे, हम –तुम
बादल के छोटे छोटे टुकडे
घूमते रहते यहां से वहां तक
आसमान की गोद में
किलकारियां भरते…

हवा ने हमें मिला दिया
बिजली ने आतिशबाजियां की
दिशाओं ने मन्त्र पढे…
हम साथ साथ बरसे
धरती हरियाई
कुछ बीज थे पडे
कोंपलें आईं…
प्यार का बिरवा उगा

समय बीता
फूल भी आए
खुशबू उडी ,प्यार की खुशबू
भंवरों ने शहद बनाया
शहद की तासीर ऐसी
जिसने चखा
प्रेम के गीत गाया
प्रेम के बोल ,प्रेम की धुन
प्रेम धरती के कोने कोने समाया
यह बात बहुत पुरानी है
इस बार का मिलना तो
इस जन्म की कहानी है…।

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