Saturday 14 January 2012

पतंग


खुला खुला सा मौसम है
खुशनुमा धूप उतर आई है जमीन पर
शीत से ठिठुरते हाथ पांवों को
राहत सी मिली
हवा ने भी अपनी गति कुछ
कम कर ली है

तुमने कहा था
पतंग उडाओगे आज
चली आई हूं
पांच मंजिले मकान की छत पर
पूरा आसमान ही आ गया जैसे
निगाहों के सामने
सैकडों पतंगें उड रहीं
कैसे पहचानूं कौन सी है तुम्हारी पतंग !

ध्यान से देख्ती हूं
सभी एक से  बढकर एक सुंदर
चंचल ,मस्त…
अठखेलियां करती हुई
एक दूसरे से आगे बढ जाने की होड में
ऊपर और ऊपर उठती हुई…

अचानक अपना वजूद भी
हल्का हल्का हो गया हो जैसे
सोचती हूं बाहें फ़ैलाऊं तो
मुझे भी उडा ले जाएगी
यह शोख हवा
और फिर---
कोई बंदिश नहीं होगी
दीवारों की,मकानों की,शहरों की
देश दिशाओं की…

उडती फ़िरूंगी यहां वहां
मेरी भी डोर होगी किसी न किसी के हाथ में
वह जब तक चाहेगा उडूंगी ऊपर ऊपर
और जब भी चाहेगा
उतार लेगा जमीन पर
ना नुकुर नहीं कर पाऊंगी मैं
उतर आऊंगी चुपचाप…

हर जीव पतंग ही तो है
एक ही जादूगर उडाता रहता है सब को
जादू भरी उंगलियां उसकी
चलाती रहती हैं दांव पेंच
कभी खींचती हैं अपनी तरफ़
कभी देती हैं छूट और ऊंचे उठने की
हंसता रहता है वह सर्वशक्तिमान
हमारी निश्छल उडान देख देखकर

कितनी समानता है हमारी
कभी ध्यान से देखो
पतंग की पहली उडान…

पहली बार हवा में ऊडते हुए
कितनी सावधानी बरतनी होती है
धीरे-धीरे,आहिस्ता-आहिस्ता…
लडखडाता है पहला कदम उसका भी
जैसे मां की गोद से उतरकर
बच्चा सीखता है चलना…

डगमग-डगमग करता चलता है
और जब जम जाते हैं पांव जमीन पर
सम्भाल लेता है अपने आप को
तब फ़िर-----
मां रोक नहीं पाती उसे दौडने भागने से
पुकारती रह जाती है
मन ही मन मुस्कुराती
इतराती सी……

ऐसे ही पतंग जब सीख लेती है उडना
धडल्ले से,बेफ़िक्री से
चलती जाती है खुले आसमान में
यह भी नहीं सोचती
हवा का रुख किधर है
दबाव कैसा है,मौसम कैसा है…
और अडचनें कितनी हैं राह में

वह जानती है
यह सब सोचने वाला वह है
जिसके हाथों में डोर है उसकी
वही देखता भी है
कि आस-पास और कोई पतंग तो नहीं
डोर मजबूत तो है न
मांझा लगा है न डोर में..?

एक नन्हीं सी नाजुक सी पतंग
सिखाती है हमें बेफ़िक्री,
मस्ती भरी उडान के मायने
कि छोड दो अपने आप को
उस अलौकिक सत्ता के हवाले
और जियो ,जियो,खुल कर जियो
जी भर जियो
जब तक वह बुला न ले अपनी गोद में

अरे ! देखते देखते पूरा आकाश ही भर गया
रंग बिरंगी पतंगों से
लाल गुलाबी नीली पीली …
पहचान लिया मैंने
यही है न तुम्हारी पतंग..!!
सुनहरी हरी धारियों वाली
सबसे अलग , सबसे जुदा
मुस्कुराती हुई 

बताऊं राज की बात
कि- वह भी
मुड मुड कर देख रही मुझको…!!!

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