Wednesday 18 January 2012

नरगिस के फूल


तमन्ना थी कि देखूं कभी
फूल नर्गिस के…
सुना था बहुत कुछ मैंने
कि लम्बे अरसे पर खिलती है
किसी वीराने में
जहां कोई देख नहीं पाता उसे
उसकी बेदाग खूबसूरती
महसूस नहीं पाता खुशबू उसकी
इसलिए रहती है उदास वह्
सोचती थी कभी मिली तो पूछूंगी
उसके अंतर्मन की बात भी

और यह भी कि जब खिलती है
रूप इसका,गंध इसकी
वजूद इसका मोह लेता है
सारी कायनात को
बिछ बिछ जाती है
प्रकृति इसके रूप लावण्य पर
निसार करती रहती है अपना सर्वस्व ही

आंखें देख लें उसको तो फिर
देख नहीं सकता कुछ और
मन रम नहीं सकता कहीं और
ऐसा ही है इसका नूर
इसके रूप का सुरूर

लंबी यात्रा पर थी
दूर कहीं वीराने से खुशबू का
एक झोंका सा आया
जैसे बुला रहा हो कोई
दूर से आवाज देकर
प्रभात के सरगम सी मन को बांधती
खुशबू के तारों पर सवार
एक पुकार
गाडी रुकवाई ,उतरकर दौडती-सी
चल दी सुगंध की दिशा में
  
क्या देखती हूं
अप्रतिम सौंदर्य,
नैसर्गिक, प्राकृतिक ,निश्कलंक…
पलकें भूल गईं झपकना
ठहर गई आकर होठों पर एक
मुस्कान---कि यही तो हैं
फूल नर्गिस के
चिर वांछित,चिर प्रतीक्षित
और सच ही विश्वास हो आया
किसी की कही बात पर कि
मन में कोई चाह हो अगर
शिद्दत से जन्मी और अनवरत पलती
तो पूरी होगी ही होगी
         
इसे देखते ही समझ में गया
प्रकृति का रहस्यमय व्यवहार
क्यों छुपा कर रखती है इसे
क्यों खिलाती है इसे वीराने में
समय के लम्बे अन्तराल पर
इसकी गढन ,इसकी नाजुकमिजाजी
इसका वैभव
जैसे सारी उम्र की
तपस्या का फल हो कोई
जमीन का यह टुकडा जिसने जन्म दिया इसे
किसी मुनि के तपों का
आशीर्वाद ही प्राप्त होगा इसे तभी तो…
प्रकृति कर रही सिंगार यहां
छुपकर…।

और उसी तप के पुण्य स्वरूप खिली है
यह----
इतनी कोमल इतनी सुंदर ,
इतनी अद्भुत
इतनी उजागर…
मैंने पूछ ही तो लिया उससे
सुना है तुम रोती हो कि
तुम्हारा दीदार करने वाला
मिलता है मुश्किल से…
हंस पडी वो
कहने लगी---मैं तो खुशनसीब ठहरी
जो इस वीराने को सजाने का
हक मिला मुझे
सजती संवरती है प्रकृति मेरी ही छांव में
मैं होती रहती हूं भाव विभोर पल-पल…

और समझ में आती है
यह बात भी कि
क्यों छुपा कर रखती है सीपी
अपनी तहों में मोती को
पलकें अपनी परतों में आंखों को
और क्यों छुपा कर रखता है मन
अपने अनगिन भावों को,जज्बातों को
सात दीवारों के ,पांच परदों के भीतर
कि झांक न सकें
जुबां पर भी आ न सकें
जब तक हम न चाहें
स्रष्टि की अनमोल रचना
हम –मानव ,
पंचतत्व की काया में
निहित पुन:पुन:खिलने वाले नरगिस के फूल…॥

     

2 comments:

  1. Hope,is phool mein aap aur rang aur khushboo bharengi,tab tak ke liye kahoonga 'laajwab'.

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  2. भावपूर्ण उद्गार

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