Friday 20 January 2012

हेमन्ती शाम


हेमन्त ऋतु की एक सुंदर शाम
अचानक लगा
कहीं से घने घने बादल
जमीन पर उतर आए हों
धुंध सी छा गई
गहरा कुहासा भर गया सर्वत्र
बॉलकोनी में आई तो देखा
फूल पौधे सभी
जैसे कुहरों की चादर
ओढकर दुबके हुए हों..
मौसम बड़ा सुहाना लग रहा था
जी में आया बाहर घूम आऊँ....
तभी मैंने तुमसे पूछा ---
मौसम कैसा है.??
तुमने तपाक से कह दिया
बहुत खराब....
मैँ भौंचक्क रह गई...
सोचने लगी क्या हो गया तुम्हें..!!
इतना ही बोली--
क्या बात करते हो.?
हाथ पकड़कर घूमने वाला मौसम है
यही मौसम देखने तो हम
जाते हैं पहाड़ों पर...!!!
प्रकृति क्या सोचेगी भला..
जब भरी साँझ वह बूंदनियों जड़ी
ओढ़नी ओढ़कर निकली तो
हमने नजर भर देखा भी नहीं
उसे सराहा तक नहीं..
.
ऐसा नहीं करते दोस्त.!
सिंगार चाहे कोई भी करे
सराहना भरी नजर की इनायत होती है
और अब यह
शीत का मौसम तो
बस चार दिनों का मेहमान है,
हर सुबह सूरज
एक पल जल्दी आने लगेगा
शनै:शनै: ग्रीष्म अपने पाँव जमाने लगेगी
फिर कहाँ ये धुँध..
और ये
धुआँ धुआँ सी फिजां
सच कहूँ ---
अभी तुम पास होते तो
सैर करते देर तक
दूर तक ,बाँहें थामे ...
सारी खूबसूरती पी जाते हम
आँखों से ही
और मौसम का नरम स्पर्श
महसूस करते रग रग से....

सोचो जरा ऐसा रंग बदलता मौसम
होता है हर कहीं..?
कहीं कहीं तो
सालों भर जाड़ा ही रहता है
कहीं बस हर वक्त तीखी गरमी
कहीं वर्ष भर वर्षा का ही आलम रहता है
कितना ऊबता होगा मन ....??
यह तो हमारी खुशनसीबी है
कि हमारे हिस्से
शिशिर, हेमंत, बासंती बयार
सब कुछ आया
हमने प्रकृति से
गुनगुनी धूप
रिमझिमी फुहार
रूमानी साँझ ,रुपहली रात
सब कुछ पाया....


चलो न.!
अभी के अभी चाहता है मन
टहलना इस धुंध में
घूम आना दूर तक...
बेफिक्र अलमस्त
फिर कल यह मौसम रहे न रहे...

  

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