Monday 16 January 2012

तुम जब आना



ऐसा नहीं कि मेरे द्वार पर
कुंडियां नहीं
या सांकल नहीं
हां ! डोर बेल ने
अपना अधिकार जमा लिया है
यह अलग बात है…।
कुंडियों की खटखटाहट
या सांकलों की आवाज का
हमारी दिनचर्या के साथ जो
आत्मीय संबंध रहा है
उसे नहीं भुलाया जा सकता…
हालांकि डोर बेल की आवाज
ने भी अपनी पहचान बना ही ली है
टुन्न टुन्न्न्…
जान जाती हूं कि कौन आया होगा
महरी या दूधवाला
घर का कोई या कोई पडोस वाला
सबके बेल बजाने के अंदाज अलग अलग हैं
पर अन्य किसी के आने और
बेल बजाने में फ़र्क नहीं कर पाती
           
इसीलिये मैंने तुमसे कहा
कि तुम जब आना
डोर बेल मत बजाना…
या तो कुंडियां खटका देना हौले से
या सांकलों को बजा देना आहिस्ते से
मैं जान जाऊंगी
ठीक पहचान जाऊंगी
जैसे भी रहूं जिस हाल में रहूं
दौड कर आऊंगी
तपाक से भर लूंगी आगोश में…
चूम लूंगी तुम्हें
आखिर तुम्हें दिल की
अतल गहराई से चाहती भी तो हूं…
जितने कायदे हैं स्नेह जताने के
सबसे इजहार करूंगी… 

हालांकि तुम्हारे कदमों की आहट
मैं सुन ही लूंगी
ज्यों ही तुम सीढियों पर पांव रखोगे
और नहीं तो मेरे दिल की धडकनें ही
बता देंगी तुम्हारे आने की बात
जो एकसार हो चली हैं
तुम्हारी राह देखते देखते
तुम्हारी धडकनों से…
ये चाहना मेरी कि देखूं तुम्हें
नजर भर कर
सुनूं तुम्हारी मीठी आवाज
बहुत पास से …
और महसूस करूं जन्म जन्मांतर के
रिश्तों की गर्माहट शिद्दत से
मुझे बता ही देगी एक एक बात
तुम्हारी सांसों की हरेक लय का हिसाब
 
और फ़िर
तुम्हारे नर्म हाथों की थाप द्वार पर
मुझे बेचैन कैसे नहीं करेगी भला
तुम्हें कलाई से थामकर
लिवा लाऊंगी भीतर
बिठलाऊंगी…
बहुत संभव है हाथ थामे ही रहूं
और देखूंगी तुम्हें जी भर
हो सकता है
निगाहें उठा ही न पाऊं
तब तुम पुचकार लेना
संभाल लेना मेरी थरथराती देह को
और सुन लेना वह सब
जिसे कहने को
जाने कब से बेचैन हैं मन प्राण मेरे
     
मैं जानती हूं
सुदर्शन रूप होगा तुन्हारा
नरम जितनी तुम्हारी आवाज है
मधुर होगा तुम्हारा व्यवहार भी
सुनो…
तुम सांकलें भी मत बजाना
घबरा जाएगा नाजुक दिल मेरा
कुंडियां तो हर्गिज मत खटकाना
कांपने ही लगेगा कलेजा
बहुत कोमल है मन मेरा
मोम की तरह
सांस की आंच से भी पिघल जाए ऐसा
  
तुम जब आना
बस जहां भी रहो
वहीं से पुकार लेना
मेरा नाम पता है न तुम्हें
कि जिससे हवा पुकारती है
कोमल कलियों को
मेघ पुकारता है मयूर को
तुम भी पुकार लेना किसी भी नाम से
कि तुम्हारे भी होठों पर
अब मेरा ही नाम है जानती हूं…॥



3 comments:

  1. Sachmuch,itni sundar kavita ke saath main justice nahi kar raha hoon sirf 'bahut sundar'kahke,par kya kahoon?

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