Wednesday 25 January 2012

माघ शुक्ल पंचमी


माघ शुक्ल पंचमी
वीणा वादिनी की वीणा
पहली बार झंकृत हुई
और नाद की पहली अनुगूंज
दिग दिगंतों तक बिखरी....
अक्षर झरे....
इसीलिए तो आज ही
शुरु किया जाता है
अक्षराभ्यास...
अनार की कलम से
रक्त चंदन की स्याही से कागज पर
स्लेट पर खड़िया से
जिह्वा पर शहद से...
 
अक्षरों से बनते हैं शब्द
और शब्दों में पिरोकर भावना
हम अभिव्यक्त होते हैं...
   
वीणा के तारों से
झरते हैं सरगम के स्वर भी
जिनसे संगीतमय होती है
सारी धरा.....
          
सोचती हूं ये अक्षर न होते
तो....
ये शब्द न होते
ये बातें भी न होतीं
...........
प्रकृति तो फिर भी बोल लेती है
अपने हाव भाव से,
पवन की गति में
धीमी या तेज चलकर
बादलों की गरज में
कड़ककर हुंकारकर
बिजली की चमक में
कौंधकर चिहुंककर..
और फूल पत्तों संग
हंस मुस्कुराकर.....
   
साँझ सुबह की लाली भी
बोल देती है
बात अपने मन की
रंगत बिखेरकर...
हम कैसे व्यक्त करते
वह सब ....
जो कहती रहती है
प्रकृति अनवरत...
उगती किरणों की प्रभाती
छिटकती लाली की प्रार्थना
चिड़ियों का चहकना..
मेघ का देश राग
मौसम का मल्हार ...
             
वन जीवों की दहाड़
जंगल का तपोमग्न मंत्रोच्चार...
मंदिर की घंटियों की टुनटुन
संध्या के पांवों की रुनझुन...
शंख की गूंजती आवाज
रात की लोरियां
झिंगुर की झांय झांय
और...
रात के मुसाफिर चांद
की खिलखिलाहट...
चांदनी ओढकर गुनगुनाती हुई रात
की मधुर स्वर लहरियां.....

शब्दों  की शक्ति
इसी दिन आई हमारी झोली में
जिनके सहारे हम
बोल सकते हैं
अपना मन खोल सकते हैं
जैसा देखते और सुनते हैं
प्रकृति से हर वक्त हर घडी

          
माघ शुक्ल पंचमी
चिरस्मरणीय ,
प्रात:वंदनीय वीणापाणि की आराधना का पावन मुहूर्त.....


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