Thursday 19 January 2012

कुछ मत लिखना


खत लिखना
पर खत में कुछ मत लिखना
कि तुम्हारे खत का
आना ही बहुत है
किसी मजमून की
कोई जरूरत ही नहीं…

लिखोगे भी तो क्या
और पढूंगी भी
तो क्या…
न तो तुम ही लिख पाओगे
वह सब कुछ जो कहने को
शेष हैं अभी
न समझ पाऊंगी
मैं ही
कि क्या कह रहे हो तुम…?
कहो तुम कुछ भी
अब तो सुनूंगी वही मैं
जो दिल को दे सके
पुरसुकून एहसास
अब और किसी बात की
अहमियत ही नहीं…

रहने भी दो न
वह सब कुछ अनकहे
कि जिनके कह देने से
हो जाती हो उनकी
तासीर ही कुछ कम…
जन्मों की चाहना
शब्दों मे बांधो मत
कि खोल पाऊंगी नहीं
खत भी तुम्हारा
डर तो होगा न खुलते ही
तुम्हारे स्पर्श की खुशबू
उड जाए न कहीं………॥


2 comments:

  1. bahut khub likha hai aapne. itna antarik kaise likh leti hai aap? mann ko chhoo gaya. bahut hi umda....

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