Thursday 27 October 2011

कह नहीं सकती


     प्रेम की भाषा
     मुखरित हरदम
     बाकी सब परिभाषा गौण…      
     कह नहीं सकती
     हम दोनों में
     धूप कौन है ,छाया कौन ?

     भोर जगाती
     हम दोनों को
     किरणों के हरकारे भेज
     सांझ सजाती
     चांद सितारे लेकर
     सुख सपनों की सेज

     हाथ थाम कर
     चला किए हम
     ऊंची नीची राहों पर
     सुख दुख के हर लम्हे झेले
     हमने हरदम
     मिल जुल कर

     मैं रोई तो आंसू मेरे
     उसकी आंखों में 
     भी छलके
     मेरे मन की
     खुशहाली में
     हुआ प्रफ़ुल्लित जी भरके

     यूं तो अपना रिश्ता अद्भुत
     कई कई जन्मों
     का है साथ
     हे ईश्वर इतनी विनती है
     कभी न छूटे अपना हाथ

     खुशियां बाटें कभी न सोचें
     अपना कौन पराया कौन…
     कह नहीं सकती
     हम दोनों में
     धूप कौन है छाया कौन…??
                           

3 comments:

  1. Very beautiful mumma :) :)
    loved it...sach me

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  2. Bahut badhiya,but ise aur long hona chahiye tha,however it deserves not less than 90/100.

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  3. thank u purwa dear .....
    thank u jyoti ji....

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