Saturday 8 October 2011

ज्वार भाटे


 उसने कहा 
 मन तो समंदर है
 लहरों के उठते रहते हैं 
 ज्वार भाटे…………
 आनन्द के, उल्लास के,
 चंचलता के,
 विकलता के
 वह बोला…………
 तो मैं कब आऊं 
 ज्वार में या भाटे में…?
 नजरें झुका लीं उसने
 बहुत धीरे से बोली
 ज्वार में आए
 तो बहा ले जाऊंगी दूर तक
 भाटा में आए
 तो संग ले डूबूंगी………
 कोई कुछ नहीं बोला
 बोल उठी खामोशी
 बज उठे जल तरंग से
 बोलती रही धडकन
 वह सब कुछ
 जो अब तक अनकहे रहे
 स्रृंष्टि के आरम्भ से…………      

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