उसने कहा
मन तो समंदर है
मन तो समंदर है
लहरों के उठते रहते हैं
ज्वार भाटे…………
ज्वार भाटे…………
आनन्द के, उल्लास के,
चंचलता के,
विकलता के
वह बोला…………
तो मैं कब आऊं
ज्वार में या भाटे में…?
ज्वार में या भाटे में…?
नजरें झुका लीं उसने
बहुत धीरे से बोली
ज्वार में आए
तो बहा ले जाऊंगी दूर तक
भाटा में आए
तो संग ले डूबूंगी………
कोई कुछ नहीं बोला
बोल उठी खामोशी
बज उठे जल तरंग से
बोलती रही धडकन
वह सब कुछ
जो अब तक अनकहे रहे
स्रृंष्टि के आरम्भ से…………
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