उसने कहा---
कल मैंने एक सपना देखा
एक डाल पर बैठी हूं
सामने की डाल पर
तुम आकर बैठे
धूप जैसा रूप है तुम्हारा
सुनहरा ,पीला
चमकीला………
हाथ बत्तख के पंखों जैसे हैं
नरम ,मुलायम ,उजले
मेरा चेहरा थामकर
तुमने कहा
तुम बिल्कुल चांदनी जैसी हो
शीतल ,कोमल,उजली
ठीक उनकी तरह
तुमने ऊपर उंगली उठाई
मैंने देखा
ऊपर कई छोटी छोटी परियां उड रहीं
श्वेत पंखों वाली
रूई के फ़ाहों सी…………
मैं मन ही मन मुस्कुराई
फ़िर तुमने मुझे नहीं पहचाना ना…!!
ओ देवदूत !
मैं परी ही तो हूं
तुम्हारी परी………
उड जाने को पंख फ़ैलाना चाहा
और सपना टूट गया………
चुपचाप सुनता रहा वह
कुछ भी बोल नहीं पाया
क्या कहे…
कौन सा रिश्ता है
किससे ,किस जनम का
कोई जान सका है भला…?
उड जाने को पंख फ़ैलाना चाहा
ReplyDeleteऔर सपना टूट गया………
bahut badhiya kavita hai.