तू नमस्य है
त्यागमयी जीवन भर ,
सर्वसहा तो है ही
तू धरती की तरह…
करुणा सदा झराया तो फ़िर
झरने सी तू कोमल है
प्रेम सरित सी बहती
तेरा मन कितना
निर्मल है………
वाणी मधुर तुम्हारी
तू प्रकति का ही रूप लगे
प्यार भरी छाया
मिल जाती
तेरे आंचल के तले सिमट
खुश होकर कर लेती है तू
रिश्तों की भी साज संभाल
सुख सपने आकर घेरें
जब गोद में
सिर रख ले कोई
जाया हो या जननी
तू बस मां का ही प्रतिरूप लगे
ताप ग्रहण करके
सूरज से
जैसे शीतल है चंदा
जब तक मन में अम्रृत है
तब तक औरत है गंगा
Atyant sunder rachna!
ReplyDeleteआज-कल सोंदर्य प्रतियोगिताओं के माध्यम से औरत को असुंदर बना दिया गया है. किसी भी बच्चे से सुन्दर औरत के बारे में पूछा जाय तो वो अपनी माँ को बताएगा. निश्चित ही माँ के रूप में औरत अद्वितीय है.
ReplyDeleteजब तक मन में अम्रृत है
तब तक औरत है गंगा
बहुत बढ़िया रचना
@praveen ji: aapka krishna avtaar series poora ho gya?
ReplyDelete@rajesh ji: thank u :)