मैं पिंजरे की मैना
यह पिंजरा
मेरा घर-आकाश...
एक दिन देखा द्वार खुले
सोचा –
आँगन देखूँ
धीरे-धीरे चलकर चाहा
बाहर आना,
पतली सी एक डोर बँधी है पांवों में
यह उस दिन जाना ......
फिर एक दिन
देखा
गगन भरा कई रंगों से ,
और निखरी रंगत धरती की
धीरे से पँख पसारा और
उड़ना चाहा..
पर हाय री किस्मत..
पर भी कतरे हुए हैं मेरे
उस दिन जाना ..
मैं पिंजरे की छोटी मैना....
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