Sunday 1 February 2015

बातों बातों में

बातों बातों में पूछ लिया तुमने
एक निर्दोष सा सवाल
चाहत क्या है
मेरा मतलब क्या कोई
चाहत की व्याख्या कर सकता है ?

चुप हो गयी मैं
कुछ नहीं बोल पाई
भर नजर निहार कर तुम्हें
थोडा संभल कर बोली
चाहत ही क्यों
इससे मिलते जुलते सारे शब्द
स्नेह दुलार प्यार
क्या किसी की भी व्याख्या कर सकता है कोई !

यह तो बस एक बंधन है
मन से मन का
रेशम सा नाजुक
किरणों सा उज्जवल
खूबसूरत सा रिश्ता है
पवन के झोंके के समान
खुशबू से भर देता है मन प्राण

हमारे रिश्ते को ही देखो
चाहत ही तो है
क्यों खिल जाता है चेहरा
सामने आते ही
मुस्कुरा उठता है अंग अंग
छुपाए नहीं छुपती छलकती हुई खुशी

क्यों लेकर हाथों में हाथ
लगता है जैसे पा लिया हो सारा जहां
चाहता है मन कि बस
ठहर जाए वक्त यहीं
इसी पल……………

कहो न दोस्त
कैसे बीत रहे आजकल
दिवस रैन पल- पल
मानों पंख लगा कर उड रहे हों
मालूम होता है
बादल की डोली पर चांद
फिसलता जा रहा हो सात आसमान के पार
फाख्ता के परों पर सवार हों किरणें
अनगिन रंगों की
खुशरंग छटा बिखरती जा रही हो

चारों ओर अनवरत……………………

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