Saturday 14 February 2015

फिर आना

कैसे कह सकते हो
वह सब समझ गए हो तुम
जो मैंने कहा
या कहना चाहा

कहने की कोशिश में पलकें
उठाती गिराती रही
सांसें बेतरतीब हुईं
बोल जो फूटे नहीं मुख से  
वह भी तो सुनना था

कैसे कह सकते हो
सुन लिया तुमने वह सब कुछ
जो भीतर ही घुमडते रहे
शब्दों की खोज में

कुछ शब्द जो अस्फुट से थे
जुबां पर आये ही नहीं
उनके मायने
और भी बहुत कुछ
जो पिरोये हुए थे
उन शब्दों के आर पार
कैसे कह सकते हो जान लिया तुमने

कभी देखूं नजर भरकर
तभी जानूंगी
एक बार फिर आना……………॥


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