Sunday 1 February 2015

मौसम है कुछ कहने का

मौसम है कुछ कहने का
दाएं बाएं बैठ निठल्ले
गुपचुप बातें करने का
मौसम है कुछ कहने का

एक हाथ में हाथ तुम्हारा
कदम दर कदम साथ तुम्हारा
दूर कहीं तक धीरे धीरे
यूं ही चलते रहने का
मौसम है कुछ कहने का   

कुहरे घोर घनेरे छाए
बादल ज्यों धरती पर आए
इन कुहरों के साए साए
बस अलमस्त विचरने का

मौसम है कुछ कहने का……………

No comments:

Post a Comment