Saturday 7 February 2015

धीरे धीरे

धीरे धीरे चलकर कोई आता है
धीरे से खोलकर
कपाट मेरे दिल के
आहिस्ते कदम धरकर
समा जाता है…………………
मुग्ध मेरी पलकें
खुलती हैं धीरे धीरे
सांसों में सुगंध सी
घुलती है धीरे धीरे
थपथपा कर मेरे गालों को
चला जाता है………………
धीरे से ही छूता है
हाथों को उंगलियों से
धीरे से चूमकर पलकों को
अधरों से
मुझको मेरे मन को
चुरा ले जाता है
धीरे धीरे चलकर
आहिस्ते कदम धरकर

कोई आता है…………………॥

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