Sunday 30 December 2012

माँ रोती क्यों हो


पोंछती है आँसू
और पूछती है गुड़िया
माँ रोती क्यों हो...

अक्षर अक्षर बात तुम्हारी
मैंने मानी 
जैसा मुझे सिखाया तूने
मत डरना
हिम्मत से रहना
घुट्टी में मुझे पिलाया तूने ...
.
मैं मरकर
चिंगारी बनकर
हर दिल में जो  धधक रही हूं
भीतर भीतर ज्वाला बनकर
देखो कैसी सुलग रही हूँ ...

मौत मेरी 
हुंकारी बनकर
जन जन की आवाज बनेगी
मेरे जैसी हर बेटी तब
निर्भय होकर राज करेगी ... 

क्यों मेरी  तस्वीर गोद में 
लिए हुए 
तुम सुबक रही हो
मुख चुप हैं पर व्यथित 
हृदय से 
मन ही मन में कुंहक रही हो 

तुम जननी हो मेरी
ऐसे मत अधीर हो
फिर आऊँगी कोख तुम्हारे
अंसुयन नयन भिगोती क्यों हो
माँ रोती  क्यों हो........


   

2 comments:

  1. Badhiya,aapne apne dil ka dard vyakt kiya!

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  2. excellent poem aunty...hope to read more brilliant ones in the future

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