Saturday 29 December 2012

बालकनी


चार दीवारों से घिरा मकान
न आँगन न बरामदा
दायें बाएँ ऊपर नीचे बस
घोसलों सरीखे मकान
एक कुंजी घुमाईए और खुल जा सिम सिम 
दाखिल हो जाईए अपने दरबे में...

शुरू शुरू में लगता था
पता नहीं हवा पर्याप्त मिले या न मिले
पर धीरे धीरे आदत हो गई
छोटी सी बालकनी तो जैसे
जान ही है फ्लैट की ...
यहीं बैठकर धूप हवा बारिश
सबसे मुखातिब होइए
छोटे गमलों में छोटे छोटे
फूल भी खिल जाएँगे
बेरोक टोक राहगीरों से बतियाएंगे

अम्मा की साग भाजी
बालकनी में ही चुनी बिनी जाती है
छोटे के होमवर्क भाभी यहीं बैठकर
करवाती है...
अख़बार वाला सीधा निशाना बांध कर
अख़बार पहुँचा देता है
सीढ़ियाँ चढ़ने के झंझट से बच जाता है
सबसे सहूलियत है यहाँ से बारात की
सज धज देखना
नाचते ठुमके लगाते बारातियों को
बेगानी शादी में दीवाना होते देखना

फुर्सत में हों तो तरह तरह के नजारे देखिए
देखिए तो सही जमाना
कितनी तेज रफ्तार से आगे भाग रहा
कोई भी पढ़निहार
बिना मोबाइल कान में लगाए
आता जाता दीख नहीं सकता
कोई भी वाहन बिना हौर्न बजाए नहीं गुजर सकता
चाहे आप सोएँ हों या जागे
ध्यान में हों या अनमने
हर गतिविधि से रू ब रू रहिए

रात को चाँद जब आपकी बालकनी  
में आकर मुस्कुराएगा
दिन भर के दुख दर्द एक पल में
दूर हो जाएँगे
अनगिनत सितारों का अकेला हीरो
रूप बदल बदल कर आयेगा
पर जब भी आयेगा
आपके कमरे में झाँकर जरूर देखेगा

कि आप
सुसज्जित फ्लैट में रहने वाले
सुलझे हुए विचार
और सुंदर दुनिया के रचयिता का
तहेदिल से आभार
मानते तो हैं न........

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