Saturday 29 December 2012

कोई तो राज है


सिमट गए शामियाने
किरणों के
सात घोड़ों के पदचाप गुम हो चले
संध्या आई
तो क्षितिज पर छुप कर बैठी धुंध
झमक कर उतर आई
कण कण मे बिखर पसर गई
ऐसी गहरी श्यामल शीतल
कि हाथ को हाथ नहीं सूझता
कोई बत्ती कोई रौशनी
कारगर नहीं
जैसे साँस थम गई प्रकृति की

चुप्पी सी व्याप रही
कोई आहट कोई शोर नहीं
गाडियाँ धीरे धीरे चल रहीं
रात सहमी सहमी सी लग रही
सोचती हूँ
इस धुंध के गहन आवरण में
कौन से रहस्य बुनती है प्रकृति
या कि
कौन से रहस्य सुलझाती है
कोई तो राज है .....  

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