Saturday 29 December 2012

कुछ अक्षर


उग आए कुछ अक्षर
कहीं भीतर  
कब बुन गए थे
कुछ याद नहीं
कब धूप मिली
कब बरखा
कुछ पता नहीं

कुछ स्वर ढूँढूँ,
कुछ वर्ण नए 
कि सजा सकूँ
और रच जाए कोई
कविता.....
जिसमें मन अपना
मैं पिरोके तुमको
सुना सकूँ ......

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