Wednesday 9 May 2012

लाली


पूरी नींद में थी.
या कुछ जगी
ठीक से कह नहीं सकती
पर उसकी आवाज साफ साफ सुनी
उसने कहा तुम लाली हो

मेरी आँख खुल गई
उँह...
पूछना चाहा- कौन सी 
पर किससे पूछूँ
वह तो छू मंतर हो गया पल में ही....
सोचती हूँ
कौन सी लाली हूँ मैं
कौन सी समझ कर कहा होगा उसने
आँखों की ---
जो अत्यधिक प्यार मनुहार से
खुमार बनकर तैर जाती हैं..
पलकें भी नहीं खुलतीं तब
बोझिल बोझिल सी
लगती हैं
अपने ही भार से झुकी झुकी

या गालों की---
जो शर्मो हया के पलों में
छा जाती है गुलाल बनकर
नजरें फिर भी झुकी ही
होती हैं
और इसे ही नारी सुलभ लज्जा
कहा जाता है

या लाली हथेलियों की---
जो हिना रचती है
खुद पिसकर ,सुहाग और
सौभाग्य का प्रतीक बनकर
खुशबू भरी
सुंदरता भरी ,मोहक और लुभावनी

या फिर
महावर की लाली
कहा होगा.?
जो पाँवों का सिंगार है
नई नवेली दुल्हन
आलता भरी थाल में डुबोकर
पाँव अपने जब चलती है
उसके बिछुओं की रुनझुन से
एकाकार हो
उसके तलवों के लाल लाल
निशान घर भर को अपने
शुभागमन का संदेश देते है
और कामना करते हैं
रंगों से भरे रखने का
घर परिवार को
खुशियों से भरे रखने का
हर एक सदस्य को
हर पल
उम्र भर....

अभी सोच ही रही थी कि
आभास हुआ वह आस-पास
ही हो कहीं...
मैंने तपाक से पूछ ही तो लिया
कहो ना कौन सी लाली 
कौन सी लाली हूँ मैं.
एक नजर मधुर मधुर
निहार कर कहा उसने-
भोर की......
भोर की लाली हो तुम
स्निग्ध ,सुहानी
रंग जाता है मेरे मन का आकाश
तुम्हारे स्मरण मात्र से
एक-ब-एक..
.

1 comment:

  1. wah ,atyant hee ramaniya rachna , jivan ke prati ashawan karti huyee . khubsurat rang kee khubsurat vyakhya , bahut khub Shashi jee .

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