Thursday 3 May 2012

रत्ती रत्ती


तिनका तिनका जोड के
चिडिया
करती नीड अपना तैयार

बूंद बूंद से भरता सागर
फूल फूल मिल
बनते हार

किरण किरण मिलकर
करती है
ऊषा का सोलह सिंगार

कतरा कतरा रस
बटोरकर भ्रमर
शहद करता तैयार

अगर बसाना है
धरती पर
एक अलग अद्भुत संसार

रत्ती रत्ती
स्नेह बटोरो
मुट्ठी भर भर बांटो प्यार……॥

No comments:

Post a Comment