Wednesday 23 May 2012

उतरा चांद


शोर गुल हल्ला गुल्ला
आंगन में कुहराम मचा था
आसमान में चांद था पूरा
उसे उतार कर लाना था
       खेल खिलौनों से मन ऊबा
       भालू चीते सब नकली
       इस प्यारे चंदा संग मिलकर
       खेल नया कोई रचना था
सीढी आई रस्सी आई
पर चांद तक पहुंच न पाई
जब सबके सब हुए निराश
तब पहुंचे दादी के पास
       धत ! इतनी छोटी सी बात
       चलो करूं मैं एक प्रयास
       पीतल की थाली मंगवाया
       पानी से उसको भरवाया
बिन सीढी के ,बिन रस्सी के
चुटकी में ही बन गई बात
पानी में उतरे सब तारे
और थाली में उतरा चांद…।  

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