Wednesday 23 May 2012

कबड्डी


सामने खेल का मैदान है
बच्चे खेल रहे हैं
कबड्डी……
दो टोलियां आमने सामने खडी हैं
बीच में एक पतली सी लकीर
खेल शुरु होता है
एक बच्चा लम्बी सांस भरता है
और दौड़ पड़ता है
सामने वाले कोर्ट में
छल कबड्डी…
हां यह खेल
छल ही तो है
छलती हैं दोनों टोलियां एक दूसरे को
जो जीत गया बाजी उसके हाथ में

हाथ बढाकर छूना चाहता है
दूसरी टोली के लडके को
सभी बच रहे हैं उससे
जिसे छू देगा
वह खेल से बाहर हो जाएगा
बचने के साथ साथ
उसे पकडने की कोशिश भी कर रहे हैं सभी
एक जुट होकर
पकड लिया और सांस टूट गयी
तो उसकी पारी खतम……

क्रम जारी है
एक आता है ,फिर दूसरा
फिर तीसरा…
सोचती हूं ऐसे ही आमने सामने
खडी होती हैं जिन्दगी और मौत
ललकारती रहती हैं एक दूसरे को
पूरे जीवन काल में
कई बार होता है सामना दोनों का
छू छू कर भागती रहती हैं दोनों
पकडने को आतुर व्याकुल
जिसके हाथ जो आ जाए
कितनी ही बार हम
मौत के करीब जा जाकर लौटते रहते हैं
जीतती रहती है जिन्दगी

पर जीतने के लिए चाहिये
बुलंद हौसले
आत्म शक्ति से लबरेज मन प्राण
जर सी चूक हुई और
पकड ढीली हुई सांसों पर
तो बस जीत गइ मौत
और खेल खतम…॥

1 comment:

  1. jijivisha ko apne bakhubi vyakta kiya hai Shashi jee , nice, sundar kavita

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