स्नेह प्रेम की धरा मखमली
नरम तुम्हारे पाँव
घड़ी दो घड़ी भूल के सब कुछ
बैठो मेरी छाँव.....
भाग दौड़ करते करते तेरे
दुखते होंगे पाँव
घड़ी दो घड़ी भूल के सब कुछ
बैठो मेरी छाँव...
.
चिड़ियों की बोली सिखला दूँ
और भँवरों का गाना
मस्त पवन की चाल सिखा दूँ
कलियों सा मुस्काना
हाथ थाम कर ले जाऊँगी
अरमानों के गाँव..
घड़ी दो घड़ी भूल के सब कुछ.
बैठो मेरी छाँव..
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रोज सबेरा आ ही जाता
अँधियारे के बाद
सुख दुख आते बारी बारी
गाँठ बाँध लो बात.
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सुख सुकून के लम्हे लेकर
बैठी हूँ इस ठाँव
घड़ी दो घड़ी भूल के सब कुछ
बैठो मेरी छाँव....
चाँद को देखो घटता बढता
रहता है हर रात
फिर भी करता है अठखेली
चाँदनियों के साथ
सुख सपनों से आँख आँजकर
रखूँगी अपनी छाँव
घड़ी दो घड़ी भूल के सब कुछ
बैठो मेरी छाँव.....
Touching & sweet.
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