काश मेरे शब्दों की
आंखें होतीं
तो दूर से भी तुमको
निहार के आतीं
तुम जो चुपचाप टहलते होते
बनके साया संग संग चलतीं…
काश मेरे शब्दों की
बाहें होतीं
तुम्हें घेरे में सदा बांध के रखतीं
एक पल को भी अगर तन्हा पातीं
छूके चुपके से दुलारा करतीं…
काश मेरे शब्दों की
जुबां ही होतीं
आवाज देके तुमको पुकारा करतीं
तुम जो खोए से रहा करते हो
तुम्हारे मन को ये बहलाया करतीं
काश मेरे शब्द
महज शब्द नहीं रुह होतीं
सुख दुख में
तुम्हारी हमसफ़र बनतीं
कभी पलकों को पोंछ देती कभी
बालों में उंगलियां ही फिराया करती…
ये मेरे शब्द नहीं
मन के साथी हैं मेरे
इनके सहारे जहां चाहूं चली जाती हूं
जितना भी दूर होके रहो तुम
खुद को तुम्हारे और करीब पाती हूं…॥
Excellent or perhaps better than excellent.
ReplyDeletethank you..
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