Saturday 3 March 2012

रचने वाले

रचने वाले
ये तूने  क्या रचा..
इसे फिर चाक पे रख के ढालो
ये संवर जाएगा
तनिक प्रयास से ही
इसकी माटी को फिर से
रूंधो तुम…

इसकी सोचों में 
स्वार्थ की बू है 
इसकी करनी में फर्क कथनी से
इसके दिल में दया की 
ममता की 
सूखती जाती जैसे निर्झरनी

बातों बातों पे क्रोध 
करता है 
बर्बरता है कर्मों पर हावी 
इसकी बातों में सच नहीं होता 
हो गया झूठ का ऐसा आदी 

कब किसका गला घोंटेगा 
खुद इसको भी 
मालूम नहीं 
ये रचना है तेरी जगती का 
सबसे उत्तम इसे क्या ज्ञात नहीं ?

इसकी माटी से धूल कंकड़ को
ठीक से छान के 
गढ़ना इसको
इसके दिल को तनिक
नरम रखना
इसे तराश के कुछ और
निखार दो तुम 

रचने वाले
तूने  जो इंसान रचा
इसपर नजर फिर से डालो 
इसकी माटी को फिर से रूंधो तुम
इसे फिर चाक पे रख के ढालो........ 



1 comment:

  1. Achchi rachna,but ise thoda aur melodious banaiye na.

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