Tuesday 9 September 2014

मजमून

सुना है
पढ लेते हो तुम
बंद लिफाफे के मजमून भी

चकित हूं सोचकर
कैसे पढ लेते हो
यह तो वैसी ही बात हुई
कि जानता हो कोई
आज जिन्दगी क्या सवाल पूछेगी

एक बंद लिफाफे सा मन है मेरा भी
भीतर कितने कितने स्वर
कितने कितने शब्द
कितनी ही
अव्यक्त अभिव्यक्तियां और
मुखर होने को बेताब भावनायें हैं

पढ सकते हो क्या
जब तक आंखें कुछ बोल न दें
जुबां कुछ बयां न करे
या रंग चेहरे का
समूचा उड कर
या फिर गहरा कर
कुछ राज खोल न दें…?

सुना है पढ लेते हो तुम
मजमून बंद लिफाफे के
पढ लो न इसे भी……………।


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