Wednesday 3 September 2014

आवाज दी होती

गयी होती मैं कबके
दौडी दौडी
सब कुछ छोड के
हर बंधन तोड के
एक बार अगर
आवाज दी होती तुमने

करती रही इंतजार
अब पुकारो तब पुकारो
नहीं मालूम
क्या सोचते विचारते रहे
कौन सी उलझन में भरमाये रहे
पहर बीते दिवस बीते
आते जाते रहे मौसम
कभी मेघ कभी बिजली
कभी पवन के हाथ
भेजा मैंने संदेशा अनेकों बार
सुना कभी तुमने
समझा हाल ही दिल का
  आये तुम
अपना कुछ हाल ही भेजा
बीत गये युग कितने
गुजरे कई कई जनम

मैं सब कुछ छोड के आती
हर बंधन तोड के आती
अगर एक बार
आवाज दी होती तुमने……………



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