Tuesday 9 September 2014

पलक झपकाए बिन

किरणों की नदी
बादल की तरी
उसमें चांद सवार

आप ही नइया
आप ही मांझी
आप ही है पतवार

मनमौजी मनचला मुसाफिर
चला छितिज के पार

यह सुंदर
यह द्रश्य मनोहर
देख रहा संसार

पलक झपकाए बिन
पलक झपकाए बिन………………
रात सुहानी
बात सुहानी
शीतल मंद बयार

झिर झिर झरता
रस अंबर से
ज्यों अम्रृत की धार

एक तो चंदा यूं ही सुंदर
उसपर मेघ सवार

नयन बावरे
मगन निहारे
ऊपर बारंबार

पलक झपकाए बिन
पलक झपकाए बिन………



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