Tuesday 9 September 2014

सुनो ना

किससे कहूं ये बात
कि मन मेरे वश में नहीं

खुला खुला अंबर देखे तो
अजब विकल हो जाए
कई कई पहरे तोड बावरा
जाने किधर उड जाए

किसे कहूं हालात
कि मन मेरे वश में नहीं

खिली अधखिली कलियां मेरी
बहुत बडी कमजोरी हैं
खुशबू चाहे कहीं से आये
खींचे मन की डोरी हैं

बहक उठें जज्बात
कि मन मेरे वश में नहीं
कि मन मेरे वश में नहीं

बादल बिजली रिमझिम बूंदें
सब मुझको बहकाते हैं
थाम के रक्खूं जितना दिल को
उतना ये भरमाते हैं

पूनम की रजनी हो चाहे
हो अंधियारी रात
ये मन मेरे वश में नहीं
कि मन मेरे वश में नहीं……


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