Thursday 20 June 2013

कितनी चंचल है

कितनी चंचल है
रुकती नहीं कहीं
इत उत भागती फ़िरती
बाल सुलभ उत्सुकता लिये
पूछती रहती सवालों पर सवाल

बारिश की पहली बूंद से
पूछती
कहां से लाई महक सोंधी
खिलती कलियों से पूछती
कहां से पाई सुगंध इतनी

छूती झरनों की उड्ती जलराशि को
निहारती मुग्ध होकर
प्रभात की लाली को
नव कोंपलों को चूमती
फ़ुनगियों पर झूलती
झूमती संग संग पुरवाई के
चहकती छांव  में अमराई के

थामकर बांहों से मैंने
एक दिन रोका
डालकर आंखों में आंखें
एक दिन पूछा
बता दे कौन है तू
इतनी चंचल सुकुमारी
हंसकर गले में झूलकर
धीरे से बोली
मैं हूं कविता तुम्हारी……



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