Thursday 20 June 2013

प्रीत पराई

उसने मुझे
राजा भर्थहरि की कथा सुनाई
प्रेम के मायने समझाने की कोशिश की
सार यही था
प्रेम शब्द ही असार है
रहस्य से भरा
कोई नहीं जानता
किसके मन में कौन बसता है
कौन किससे प्रेम करता है…
सारी दुनिया बंधी है इसी माया जाल में
क्योंकि प्रेम तो मन की उपज है
और मन छुपा रुस्तम…
बहुत समझाया
मेरी समझ में कुछ नहीं आया
ऐसा भी क्या…
मन तो सबका एक ही धातु का बना है
मन से मन का गहरा नाता है
मन से पुकारो तो
शब्दों की दरकार नहीं होती
कोई भी सुन लेगा

मन ही मन मुस्कुराई
बात मेरे पल्ले जरा भी नहीं आई…
पर कथा सुनते सुनते मैं भी
प्रेम कर बैठी…
उसी कथा सुनाने वाले को दिल दे बैठी…
उसके ही धुन में रहने लगी
दिन बीते
बरस बीते…
युग भी बीत चला
बाट निहारती रही
प्रेम की माला फ़ेरती रही…
दीवानी मैं
अपने प्रेम की ताकत पर भरोसा करती रही
मन की पुकार रंग लायेगी
और एक दिन
वह आया……
क्या कहूं
जिस बात को समझने में बरसों लगे
एक पल में मेरे समझ आई
उसकी आंखों में देखी मैंने
प्रीत पराई……





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