Friday 8 August 2014

मेघ छाये

कब से बस गरज तरज रहे थे
अब जाके बरसे

नन्हीं फुहारों ने बदन पोंछ डाला
धानी चुनरिया ओढाई
माटी की सोंधी
महक हर दिशा में
पुरवा चले बौराई
डार पात खिल के हरे भरे दीखें
कब से बेचारे थे तरसे…………

ओरी से गिरता है झर झर पानी
नदी नाले बेखौफ बहते
रंग बिरंगे छातों का मौसम
भींगे भींगे तन मन रहते
आया संदेशा पीहर से आवन का
मन बिटिया के हरसे…………
खूब भला हो
हरियाले सावन तेरा

खुशियों की बूंदें बरसें
सागर का सारा पानी
धूप ने उडाया
तब जाके बादल बने
खूब तपी जब धरती हमारी
तब जाके हुए वो घने
कब से बस उमड घुमड रहे थे

झमझमाके अब बरसे……………॥

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