Tuesday 12 August 2014

फूल


छोटी सी बालकनी
गिनती के चार गमले
थोडे से फूल………
तोडना है तोडकर चढाना है
पूजा करने जाना है

हाथ बढते और रुकते हैं
एक समय था
बाग से चुन कर सुंदर सुंदर फूल
ले जाते थे लोग पूजा की थाल में
कथा है
शबरी ने मीठे खिलाने के चक्कर में
जूठे किये थे बेर सारे

कहां से लाऊं वैसी भक्ति
वैसा मन
फूलों को हाथ लगाती हूं तो
पौधा निरीह सा देखता लगता है
कैसे तोड लूं कलियों को
जिन्हें खिलना है अभी
छोटी सी जिन्दगी खुशी खुशी गुजारना है

रुक जाते हैं हाथ
किताबों में लिखा है जीवन है इनमें
सुख दुख महसूस करने की
शक्ति भी
क्योंकर दुखाऊं दिल इनका
मुझे क्या हक है
इन्हें कष्ट देने का

नहीं तोड पाती
लौट आती हूं
आंख मूंद प्रार्थना कर लूंगी
धन्यवाद भी कि
बचा लिया उसने मुझे
इन्हें टहनी से अलग करने से………


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