Sunday 10 August 2014

दीवार और तस्वीर

किसी खाली दीवार पर
ज्यों ही टांग दी जाती है
कोई  तस्वीर
एक रिश्ता बन जाता है अनायास
दीवार का तस्वीर के साथ
कलेजे से लगाकर रखती है
कस कर थामे होती है  
उस तस्वीर को
हवा का कोई झोंका गिरा न दे

पता है दीवार को
रिश्ता है इस तस्वीर का
घर के वाशिंदों से
प्यार का स्नेह का
मान सम्मान का आदर का

भाई बहन होंगे या कि बेटे बेटियां
मां बाप होंगे या कि
बुजुर्गवार परिवार के
या फिर होगी कोई मूरत
नवा कर शीश जिसके आगे
भर जाता होगा विश्वास
सबके मन में
जाग जाती होगी शक्ति अंतस की


थामे रहती है दीवार
उस तस्वीर को
गिरने नहीं देती हवा के झोंके से
कोई नहीं जान पाता
उस कील से अनवरत होने वाली पीडा को
जो चुभी होती है
दीवार के बदन पर
जिसके सहारे टंगी होती है तस्वीर
कोई नहीं महसूसता उस दर्द को
जो सहती है दीवार
महज सहेजने को प्यार सबका
महज थामने को तस्वीर प्यार की…………।



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